शुरू के 60-70 साल ही मुश्किल हैं… फिर तो लाइफ सच में रिटायरमेंट प्लान

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

बचपन – “दूध पी लो, स्कूल जाओ, नंबर लाओ” पहला दशक जाता है इस खोज में कि बड़ा कब होंगे?
और जब हो जाते हैं, तो एहसास होता है – “बचपन ही सही था रे बाबा!”

जवानी – “करियर बनाओ, शादी करो, EMI भरो”

20 से 40 के बीच का जीवन तो एक तरह से जिंदगी का लोन पे लोन वाला EMI टूल है।

  • करियर बनाए नहीं कि शादी की फाइल खुल जाती है, और फिर क्रेडिट कार्ड के बिल, बच्चों की फीस और पेट्रोल की कीमतें आपका “मूड स्विंग” तय करती हैं।

फिर आते हैं 60…

“बस बेटा, अब तो रिटायर हो गया हूँ, थोड़ा आराम चाहिए…”

आराम कहाँ?

  • अब आप घर के CFO (Chief Fixing Officer) हैं। गीजर खराब है, मोबाइल हैंग हो गया, बैंक OTP नहीं आ रहा – सब आपकी ड्यूटी

मगर फिर भी…

फिर भी 70 पार करते-करते जीवन में कुछ असली मज़े शुरू होते हैं:

  • कोई पूछे नहीं – “अब आगे क्या प्लान है?”

  • कोई रोके नहीं – “इतना मीठा क्यों खा रहे हो?”

  • नहाना भी “मूड” पर डिपेंड करता है।

  • और सबसे बड़ी बात – रिश्तेदार खुद फोन करने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है – “अब तो टाइम कम है, बात कर लें।”

“जिंदगी का असली झमेला तो 60 तक का है। उसके बाद आदमी खुद नहीं कहता ‘व्यस्त हूँ’, दुनिया मान लेती है।”

जीवन दर्शन:

70 के बाद ‘मंज़िल नहीं’, सिर्फ ‘मोक्ष’ का रास्ता होता है!
बिना अलार्म, बिना बास की डांट, और बिना ऑफिस मीटिंग – सिर्फ गुनगुनी धूप, मॉर्निंग वॉक और “याद है वो ज़माना?” वाली बातें।

अगर आपने पहले 60-70 साल सर्वाइव कर लिए, तो बधाई हो – अब आपकी जिंदगी में कोई KRA, KPI या KRK नहीं है। सिर्फ शांति, सटीक ताने, और सुबह की अख़बार ही बचे हैं।

“सुंदर बहराइच, स्वच्छ बहराइच” – और कब्रिस्तान में नाले का पानी? देखें वीडियो

Related posts

Leave a Comment